बुधवार, 22 अगस्त 2012

स्‍नेह की छांव में ...

आज पापा की तिथि मन रात से ही उन्‍हें अपने आस-पास महसूस कर रहा है ...
मेरी हर बात पर स्‍नेह से हां कहते और मुस्‍करा देते ...
बस उनकी वही चिर-परिचित मुस्‍कान है और पलकों पे नमीं ...

कुछ मेले बचपन के
ख्‍वाबों में अब भी चले आते हैं,
कुछ पलों के लिए
आकर पलकों पे ठहर जाते हैं
दिल को बेचैन हैं करते वो झूले जब
हम छोड़ के उंगली बाबा की
गुम हो जाते हैं
रोते हैं मिलने की फ़रियाद भी करते हैं
अश्‍कों के बीच उनको याद भी करते हैं
महसूस करते हैं उन्‍हें हर पल
सिर्फ़ महसूस ही कर सकते हैं उन पलों को ...
हर एक बात को हर एक याद को
साथ कर लेते हैं
और चल पड़ते हैं स्‍नेह की छांव में
धीमे कदमों से आहिस्‍ता - आहिस्‍ता ...

10 टिप्‍पणियां:

  1. kuchh yaadein ,yaad hee rah jaatee .kabhee khwaabon mein bhee nahee aatee ,
    sundar bhaav

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  2. उनके स्‍नेह की छांव हमेशा हमारे साथ होती है... श्रद्धा सुमन...

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  3. घर पर रहना शाम को, बिटिया रखना ख्याल ।

    दे देना माँ की दवा, लेना उन्हें संभाल ।

    लेना उन्हें संभाल , रात में आ जाऊँगा ।

    लिखी लिस्ट है पास, एक गुड्डा लाऊंगा ।

    हो जाये गर देर, जरा हिम्मत तुम रखना ।

    पापा रविकर पास, नहीं तुम कहीं सुबकना ।।

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  4. उनके स्नेह की छाँव हम पर हमेशा बनी रहती है.....
    बस महसूस भर करनी होती है!आप कर रही है....

    कुँवर जी,

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  5. पिता के स्नेह की आंच जीवन की हर राह में साथ रहती है..भावभीनी श्रद्धांजलि..

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  6. पुत्र को माता और पुत्री को पिता से अधिक स्नेह होता है। ईश्वर यह स्नेह बनाए रखे ताकि पिताओं की स्मृतियां बनी रहें।

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  7. पिता के प्रति प्यार को आपने सुन्दर अभिव्यक्ति दी है

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  8. एक था बचपन एक था बचपन
    बचपन के एक बाबूजी थे............

    आपने तो रुला दिया ।

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