शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

उसे पता था .. !!!

जड़ों को विस्‍तार देती
धरती ने
कभी भी पेड़ को
भार नहीं माना
उसका विशालता से
कभी नहीं सहमी
उसे पता था
उसका साया आकाश है ...
..........................................

प्रेम
इस ढाई अक्षर ने
कितनों की जिन्‍दगी के
मायने बदल दिये
जिनके पास यह होता है
उनके पास एक
विस्‍तृत आकाश होता है
जिनके पास से
यह चला जाता है
उनके पास आंसुओं का
पूरा सैलाब होता है
....





बुधवार, 29 अगस्त 2012

मन ...

मन .. हमारे शरीर का एक ऐसा हिस्‍सा जिसे हम में से किसी ने नहीं देखा लेकिन हमारा शरीर पूरी तरह से इसके अधीन रहता है ... सारे क्रिया-कलापों का कर्ता-धर्ता यही है ... चंचल चपल हमेशा अपनी ही करने वाला अधीर सा यह मन किसी नटखट बालक की भांति प्रतीत होता है ... इसका बचपना कभी नहीं जाता पल में उदास तो पल में खुश कभी लम्‍बी उड़ान भरता और जा पहुँचता उनके पास जो सात समंदर पार हैं या मीलों की दूरियाँ हैं जिनके बीच कभी सबके बीच में रहकर भी तन्‍हा हो जाता बगल में कौन बैठा है ? उससे भी अंजान इसकी माया निराली है तभी तो किसी ने कहा है न माला फेरत जुग गया गया न मन का फेर ...आप लाख कोशिश कर लो पूजा पाठ की जप तप की यदि मन नहीं चाहेगा तो कुछ भी करना संभव नहीं या फिर जो भी किया सिर्फ़ दिखावे के लिए ही किया ...
इसके फ़ेर में आने से कोई बचा भी तो नहीं क्‍योंकि इसे दिखावा करना भी खूब आता है ... यदि यह नहीं चाहेगा तो आप किसी को अपना सच चाहकर भी नहीं बता सकते ... तकलीफ़ सहते रहेंगे भीतर ही भीतर लाख दु:ख सतायेगा ... पर ये किसी से साझा करने ही नहीं देगा, कभी - कभी तो मुझे यह मन खिलाड़ी लगता है खेलता रहता है रोज़ नये - नये खेल और हमें खबर तब होती है जब परिणाम आता है कई बार कहता है धीरे से tit for tat ...
तभी तो कहते हैं हम सहज़ ही मन की बातें मन ही जाने ... इसकी एक बात और भी ये चंचल ही नहीं हठी भी होता है इसने जो ठान लिया उसे पूरा करके ही रहता है ..फिर चाहे कितनी भी अड़चनें आये ये पूर्णत: कृत संकल्पित हो जुट जाता है पूरे जोश के साथ ... . जैसा आज मुझे लगा इन विचारों का आपसे साझा करने का ... मैने तो कर लिया अब आपकी बारी है ... कुछ विचार आपके भी मन के बारे में ...

बुधवार, 22 अगस्त 2012

स्‍नेह की छांव में ...

आज पापा की तिथि मन रात से ही उन्‍हें अपने आस-पास महसूस कर रहा है ...
मेरी हर बात पर स्‍नेह से हां कहते और मुस्‍करा देते ...
बस उनकी वही चिर-परिचित मुस्‍कान है और पलकों पे नमीं ...

कुछ मेले बचपन के
ख्‍वाबों में अब भी चले आते हैं,
कुछ पलों के लिए
आकर पलकों पे ठहर जाते हैं
दिल को बेचैन हैं करते वो झूले जब
हम छोड़ के उंगली बाबा की
गुम हो जाते हैं
रोते हैं मिलने की फ़रियाद भी करते हैं
अश्‍कों के बीच उनको याद भी करते हैं
महसूस करते हैं उन्‍हें हर पल
सिर्फ़ महसूस ही कर सकते हैं उन पलों को ...
हर एक बात को हर एक याद को
साथ कर लेते हैं
और चल पड़ते हैं स्‍नेह की छांव में
धीमे कदमों से आहिस्‍ता - आहिस्‍ता ...

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

ठहर जाओ दम भर के लिए :)

मैंने कई दफ़ा चाहा
उतार दूँ कर्ज तुम्‍हारी दुआओं का
इन दुआओं ने मुझे कई बार
मौत की आगोश में जाने से बचाया है
जिन्‍दगी को यह कर्ज भले ही मंजूर हो
पर सच कहूँ तो मेरी आत्‍मा
इस कर्ज से मुक्ति पाना चाहती है
...
तमन्‍नाओं का  यूँ तो
कोई लेखा-जोखा नहीं रहता किसी के पास
पर जब तमन्‍ना जिन्‍दगी को जीने की होती है तो
बस यही ख्‍याल आता है
इस नश्‍वर जिन्‍दगी से इतना प्रेम किसलिए
इसका अंत एक न एक दिन तो होना निश्चित है
फिर ये भय कैसा
कभी सड़क पर चलते हुए
किसी अज्ञात वाहन की अनियंत्रित गति से
बाल-बाल बच जाने पर
ह्रदय की धड़कनों की रफ़्तार कई गुना तेज हो जाती
जिसे नियंत्रित करने के लिए
जहाँ हो जैसे हो बस ठहर जाओ दम भर के लिए :)
....