शुक्रवार, 23 मार्च 2012

उसकी हंसी में खिलखिलाकर ...
















उपकार के प्रति तुम
कृतज्ञता का भाव रखते हो मन में जब
तो क्‍या करते हो बदले में
उसके लिए विनम्र हो जाते हो
या नतमस्‍तक हो
उसका अनुसरण करने लगते हो
उसकी हर खुशी का
ख्‍याल रख उसके आगे-पीछे हो
उसकी ढाल बन जाते हो 
सोचो क्‍या उसने तुम पर
इसलिए उपकार किया था
वो तो मात्र माध्‍यम था
तुम्‍हारे लिए...
जो वह निष्‍कपट हो बन गया 
बस यह सोचकर
कभी तुम्‍हें भी अवसर मिले
तो किसी अंजान शख्‍़स पर
उपकार कर देना ...
किसी मासूम बच्‍चे के 
सिर को सहलाकर
उसकी  हंसी में खिलखिलाकर
शामिल हो जाना ... 


मंगलवार, 13 मार्च 2012

बजट चक्र और आम जन ...


हम आम जन सामान्‍य सी भाषा में  आय और व्‍यय की सूची को बजट कहते हैं, बजट किसी देश, संस्‍था, व्‍यक्तिगत अथवा किसी परिवार का भी हो सकता है, यह भविष्‍य में किये जाने वाले व्‍यय का हिसाब है जिसे हम वर्तमान में बनाते हैं, हर साल की तरह इस साल भी मार्च माह में बजट पेश होने जा रहा है ... केन्‍द्रीय बजट भारतीय राज्‍य के राष्‍ट्रीय जीवन में अपनी भूमिका और भागीदारी को ठोस रूप देता हुआ साल दर साल बदलता हुआ यह एक विचारणीय मुद्दा है बजट में सरकार की आर्थिक नीतियों का स्‍पष्‍ट संकेत मिलता है, इसके बनने की प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होने के साथ-साथ अति गोपनीय भी होती है बजट भाषण पूरा होने के सात दिन पहले से बजट से जुड़े सभी अधिकारी और कर्मचारियों का बाहरी दुनिया से कोई सम्‍पर्क नहीं रहता है ... संसद में बजट पेश किए जाने से 10 मिनट पहले कैबिनेट को इसका संक्षिप्‍त रूप दिखाया जाता है।
अब सवाल यहां आम आदमी के बजट का या परिवार का आता है जहां घर खर्च की जरूरी चीजों के साथ बढती मंहगाई के बीच एक वर्ष तो दूर की बात एक माह का बजट भी अव्‍यवस्थित हो उठता है क्‍योंकि यहां दैनिक उपयोग में आने वाली वस्‍तुओं के दामों में जिस तरह से बढ़ोत्‍तरी होती है वहां किस खर्च को कितना और किस तरह सुनिश्चित किया जाए यह एक बड़ा सवाल बन जाता है ...केन्‍द्रीय बजट जहां अपनी जटिलताओं के चलते गोनपीय ढंग से बनाया जाता है उसमें आज भी वही पुराना ढर्रा कायम है जिसमें आम जन के उपयोग में आने वाली वस्‍तुओं को अनदेखा कर दिया जाता है जब कभी भी हुआ रसोई गैस एवं पेट्रोल के दामों में वृद्धि कर दी जाती है इस पर ध्‍यान देने के साथ सकारात्‍मक बदलाव की आवश्‍यकता भी है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।

यहां तो उद्योंगों का भार भी आम जनता के माथे पर मढ़ दिया जाता है अब बात हो रही है बिजली पर वैट लगाने की ... बिजली पर वैट लगाने से आम लोगों पर दुहरी मार पड़ेगी उसे अपने घर के बिल से तो झटका लगेगा ही ... उद्योग-धंधों पर पर बढ़े बोझ का भार भी उसे उठाना पड़ेगा आम लोगों के उपयोग की चीजों के दाम बढ़ेंगे जिन्‍हें मंहगे दामों पर खरीदना होगा इस एक फैसले से सभी पर असर पड़ेगा जब उद्योग अपने उत्‍पाद मंहगे करेंगे तो प्रतिस्‍पर्धा में पीछे होंगे बाजार में पहले से ही सस्‍ते चाइनीज़ माल की भरमार है ।

बजट की सार्थकता तो तभी सिद्ध होती है जब जन पक्षीय बजट पूर्व दुराग्रहो को दूर करते हुए लकीर का फ़कीर न बनते हुए पेश किया जाए ताकि आम जन भी कुछ राहत महसूस कर सके ।

बुधवार, 7 मार्च 2012

आप सबकी पहचान आपकी कलम ...















इस बार महिला दिवस और होली दोनो का एक साथ आ जाना ... कौन जाने किस सत्‍य से परिचित करा रहा है यह दिन ..सच कहूं तो रंग खिलते भी वहीं हैं जहां स्‍त्री का सम्‍मान होता है  इस सम्‍मान के लिए क्‍या कोई एक दिन निश्चित  होना चाहिए .. हम मन में विकास की सोच रखें ऊपर उठने की इच्‍छा को बलवती रखें और जड़ों को कमजोर करते चलें या उन्‍हें कलंकित करने में किसी तरह की कसर न छोड़ें ... हत्‍या कर दें गर्भ में जिसकी यह भूलकर कि हमारी जननी भी यही है ये न होगी तो हमारा अस्तित्‍व ही क्‍या ... इन सब बातों का सिलसिला लम्‍बा चल सकता है लेकिन ब्‍लॉग जगत में भी कई ऐसी शख्सियत हैं जिनकी लेखनी के आगे नतमस्‍तक होने को जी चाहता है मुझे लगा इन सबको एक साथ आपके सामने लाऊँ अपनी नज़र से सबसे पहले चलते हैं हम....  आप सबकी पहचान आपकी कलम ... और आपका अपना ब्‍लॉग .. जिसके माध्‍यम से हम अपनी बात अपने विचार सबके साथ साझा कर सकते हैं ...
आदरणीय रश्मि जी के ब्‍लॉग पर इस बार इनकी महिला दिवस पर लिखी गई पोस्‍ट एक गहन सच्‍चाई लिए हुए है जिससे हम इंकार नहीं कर सकते ... कितनी दृढ़ता से वे कह रही हैं नहीं चाहिये दिवस ....
आगे बढ़ते हुए नज़र जहां जाती है वहां आदरणीय संगीता स्‍वरूप जी दिखाई देती हैं ... जिंदगी की महाभारत
के साथ आदरणीय वंदना जी को पढ़ते हुए आगे बढ़ेंगे ... जहां हैं होली के अनोखे रंग ...रंगों की बातें ...
आदरणीय साधना जी की इस प्रस्‍तुति में जहां है ... प्रतीक्षा
यहां रेखा श्रीवास्‍तव जी होली की अद्भुत छटा बिखेर रही हैं रंगों के साथ  ... होली ... होली ... होली ...
रंगों की इस मस्‍ती के बीच शमा जी कहती हैं  ... दीवारें बोलती नहीं
तो वाणी जी का कहना है कुछ ये ... छोटी पहचान लम्बा इंतज़ार....
तो है पर डा. मोनिका जी बता रही हैं कि स्‍वयं ....तय करें अपनी प्राथमिकतायें
अपनी प्राथमिकताओं में मत भूलें ... रचना दीक्षित जी के अनुसार ... खबर की दुनिया
में एक नाम और भी है प्राथमिकता के साथ ... अर्चना चावजी  का
डा. दिव्‍या ने कहा है चिर युवा हैं भारत माता बिल्‍कुल सच उनकी बात से सहमत भी हूं ...
दर्द की बात हो यह क्षणिकाओं की एक नाम सबसे पहले आता है ... इनका हरकीरत हीर जी
फिर है मंद बयार जहां इंदु जी के शब्‍दों में उनका ब्‍लॉग हृदयानुभूति पर यहां देखा इन्‍ह‍ें तो आइए आप भी ..
आपके सानिध्य में दिन-रात जो रहने लगा हूँ....... ने कहा है मृदुला प्रधान जी ने ...
कहा तो कुछ मेरी कलम से .. में हैं आपके साथ रंजना भाटिया जी
 हंसकर जीवन ऐसे जिया बता रही हैं अनुपमा जी मेरी तो मंशा यही है कि
सबको साथ लेकर चलूं ... लेकिन कहीं आप सब मुझे मन ही मन ... कुछ कह तो नहीं रहे ... अब ज्‍यादा नहीं बस ...
हमारे ब्‍लॉग जगत की नई कलम के ऐसे हस्‍ताक्षर जिनकी चर्चा न हो तो सब सूना लगेगा ...
इनकी लेखनी भी बहुत ही सशक्‍त एवं परिपक्‍व है ... मिलते हैं अनुलता 'विद्या' जी से यहां ...
नारी सर्वत्र पूजिते ... बस कहते सुना है लोगों को ...  जिसने हिम्‍मत कभी ना हारी है वो नारी है ....
सखियों ने भेजा संदेश ... कह रही हैं अवंती सिंह जी यहां .. आओ होली आई है
आप सभी को साथ लाने का यह प्रयास था संभव हुआ या नहीं यह तो आप ही को बताना है ... शुभकामनाएं एक दिन की नहीं .... बल्कि हर दिन की चलते-चलते ... शिखा जी यहां हैं ...जय हो !