शनिवार, 26 नवंबर 2011

ये खजाना तो ....!!!





















उसकी आंखो से दर्द
बयां होता था
पर फिर भी जाने कैसे
लबों पे उसके
तबस्‍सुम खेला करती
मैं हैरां होती
उसकी संजीदगी पे
वो मुझको समझाकर कहती
देख हंसी सब बांट लेते हैं
आंसू बांटना जरा
मुश्किल होता है
तूने सुना है न
ये कीमती होते हैं
फिर इसे कैसे बांटेगा कोई
ये खजाना तो बस
चुपचाप चोरी छिपे ही
लुटाना होता है  ....!!!

बुधवार, 9 नवंबर 2011

कैसे गया होगा ... !!!














कोई पलकों में
जाते-जाते भी
लम्‍हा बन
ठहर गया होगा
अश्‍कों की
नमी के बीच
वहम पाला
उसने खुशी का
बता भला
अपनों से दूर
वो हंसकर
कैसे गया होगा  ... !!!