शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

मौन होकर भी ....











खामोशी के साये
मुझे चारों ओर से
घेर लेते हैं जब
तो मेरी नजरें
तुम्‍हें खोजती हैं
मेरा मौन
तुम्‍हें पुकारता है
मेरा अन्‍तर्मन
रूदन करता है
उसकी सिसकियां
मुझे द्रवित करती हैं
तब लगता है
मैं तुम्‍हारा नाम लेकर
तुम्‍हें आवाज दूं
मेरी उस आवाज से
तुम्‍हें यकीन हो जाए
मेरी तड़प का
जो मौन होकर भी
बहुत कुछ कहती है .... !!!!

मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

बिखर जाता दर्द ...











दर्द को छूकर
वह सहलाती जब भी
कोरों से बहते आंसू
वह हथेली में
समेट लेती जब
बिखर जाता दर्द
उसके आंचल में
सिमटने के लिए
वह एक खोखली हंसी
ले आती लबों पर
कहती क्‍यूं
इतना स्‍नेह मुझसे
जो मेरा दामन
छोड़ा नहीं जाता
मेरे धैर्य की
कितनी परीक्षा
लेनी है तुम्‍हें ....
अचानक एक टीस सी उठती
लगता सब कुछ खत्‍म
फिर वह संयत कर खुद को
कह उठती
अच्‍छा चलो मैं अब
तुम्‍हारे संग चलूंगी
तुम्‍हारे साथ
जीवन के नये रंग
गीतों में उतारूंगी
कुछ तुम्‍हारी बातें होंगी
कुछ मेरे अनुभव
तुम्‍हें अपने अंतस में
छुपा लेने के ...!!!