मंगलवार, 9 जून 2009

चल दिया बिना कुछ कहे . . .

मृत्‍यु हमेशा इंसान के साथ-साथ रहती है, वह इंसान नहीं जानता की कब वह उसे अपनों से दूर कर देगी, कवि अक्‍सर अपनी कल्‍पनाओं में, या एक आम व्‍यक्ति जो लेखक नहीं भी होता वह भी उसका जिक्र कभी न कभी कर ही देता है, परन्‍तु यह जब आती है तो किसी को एक पल का मौका नहीं देती कुछ कहने सुनने का . . . और रह जाते हैं अधूरे ख्‍वाब . . . अधूरी बातें मन की मन में ही सदा-सदा के लिए . . . ।

मेरी कल्‍पना में जब भी तुम आई,

मृत्‍यु मैने उसे बताया लोगों को ।

तब मुझे तुम्‍हारा सिर्फ अहसास ही था,

जिसका विश्‍वास दिलाया मैने लोगों को ।

तुम आती हो तो तुम्‍हें कोई रोक नहीं पाता,

कविताओं में अपनी कई दफा बताया लोगों को ।

तालियां बजती थीं सब वाह वाह कहते थे सदा,

आज तुम मेरे साथ हो मैं बता ना पाया लोगों को ।

कितने भाव, कितने सपने मन में ही रह गये सब,

ये बातें दिल की अन्तिम समय बता न पाया लोगों को ।

तुम्‍हारी उंगली को थाम के, चल दिया बिना कुछ कहे,

मैं इस जहां से उस जहां के लिए बता न पाया लोगों को ।

1 टिप्पणी:

  1. ज़िंदगी भर कहता रहता है, कोई नहीं सुनता।

    और फिर हम कह उठते है कि चल दिया बिना कुछ कहे

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